“Savitribai Phule Jayanti 2024: आज 3 जनवरी 2024, को पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है। वह एक शिक्षिका कवयित्री, और सामाजिक कार्यकर्ता, के रूप में विश्वविख्यात हैं।”
Savitribai Phule Jayanti 2024: आज 3 जनवरी 2024 को सभी देशवासी भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती मना रहे हैं। 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गाँव में जन्मी सावित्रीबाई फुले एक सामाजिक कार्यकर्ता, कवयित्री और शिक्षक के रूप में अपने काम के लिए जानी जाती हैं।
वह महिला मुक्ति आंदोलन में सक्रिय भागीदार थीं और बाद में भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं। उन्होंने देश में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।
सावित्रीबाई फुले का जीवन और शिक्षा
सावित्रीबाई फुले ने बहुत कम उम्र में ही ज्योतिराव फुले (सामाजिक कार्यकर्ता और व्यवसायी) से विवाह कर ली। जब वे दोनों विवाह के बंधन में बंधे, तब सावित्रीबाई मात्र 9 साल की थीं और ज्योतिबा 13 साल के थे। उस समय उनके पति उनके गुरु बने और उन्हें घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया।
हालाँकि, महिलाओं की शिक्षा को प्रतिबंधित करने वाले सख्त सामाजिक नियम-व्यवस्था होते थे। शिक्षा से वंचित दलितों के सामने तमाम चुनौतियों के बावजूद सावित्री ने अपनी शिक्षा पूरी की।
सावित्रीबाई फुले की उपलब्धि
सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिराव के साथ मिलकर भारत का पहला गर्ल्स स्कूल शुरू किया, जिसने पितृसत्ता की बाधाओं को तोड़ दिया और भारत की पहली महिला शिक्षिका और पहली भारतीय प्रधानाध्यापिका बनीं। 1851 के आते-आते, सभी के लिए शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए सावित्रीबाई फुले ने पुणे में महिलाओं के लिए तीन स्कूलों की स्थापना की।
सावित्रीबाई का सामाजिक सुधार और सक्रियता
सावित्रीबाई फुले का योगदान केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने शिशु हत्या की रोकथाम के लिए एक घर खोलकर, विधवाओं को आश्रय दी और उन्हें अपने बच्चों को गोद देने की अनुमति देकर समाज के मानदंडों को चुनौती दी। उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा के खिलाफ दृढ़ता से लड़ाई लड़ी, उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह की वकालत की।
समावेशी शिक्षा दृष्टिकोण
सावित्रीबाई फुले ने भिडा वाडा स्कूल में फातिमा बेगम शेख को नौकरी पर रखकर इतिहास रच दिया। फातिमा बेगम ज्योतिराव के पति उस्मान शेख की दोस्त थीं। रूढ़िवादी समुदायों के विरोध का सामना करने के बावजूद, उन्होंने शिक्षा में समावेशिता को बढ़ावा देते हुए विभिन्न जातियों की लड़कियों और बच्चों को पढ़ाना जारी रखा।